नई दिल्ली। गणतंत्र दिवस के अवसर पर देश की राजधानी नई दिल्ली के राजपथ पर इस बार छत्तीसगढ़ की शिल्पकला और पारंपरिक आभूषण पर आधारित झांकी होगा आकर्षण का केंन्द्र। पृथक छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद से ही नई दिल्ली के राजपथ पर लोककांचल का प्रतिनिधित्व करता हुआ छत्तीसगढ़ प्रतिवर्ष मनोहारी झांकी के लिये पुरस्कृत भी होता आ रहा है। प्रदेशवासियों के साथ ही देशभर की मीडिया की निगाह भी छत्तीसगढ़ पर टिकी होती है कि इस बार क्या खास होगा? क्योकि छत्तीसगढ़ अपनी उन लोक परंपराओ की झांकी प्रस्तुत करता है जिसकी दुनियां दिवानी है।
इस बार राजपथ पर निकलने वाली झांकी में छत्तीसगढ़ की परंपरागत शिल्पकला और दैनिक लोक आभूषण को दिखाया गया है। जिसमें एक ग्राम्य बाला छत्तीसगढ़ के पारंपरिक गहनें तोड़ा, पैरी, पैजन, लच्छा, साँटी, बिछिया, चुटकी, ऐंठी, कड़ा, टरकउव्वा, पटा, करधन, नांगमउरी, सूता, ककनी, खिनवा, लुरकी, छुमका, ढार, करन फूल, फुल्ली, नथ, रुपियामाला, तिलरी, पुतरी आदि से श्रृंगार की हुई है। झांकी के सामने वाले हिस्से में बेलमेटल से तैयार किया हुआ नंदी की प्रतिमा है। यह छत्तीसगढ़ के ढोकरा-शिल्प का बेहतरीन नमूना है। अत्यंत सुंदरता के साथ अलंकृत यह प्रतिमा लोकजीवन के आध्यात्मिक पक्ष को तो सामने लाती है साथ ही पशु-पक्षियों के प्रति उनके अनुराग को भी प्रदर्शित करती है। इसी शिल्प के निकट नृत्य-संगीत की कला परंपराओं को दर्शाया गया है।
झांकी के मध्य में पारंपरिक आभूषणों से सुसज्जित आदिवासी युवती है, जो अपने भावी जीवन की कल्पना में खोई हुई है। झांकी के आखिर में धान की कोठी है, ढोकरा शिल्पी ने इस पर अपनी शुभकामनाओं का अलंकरण किया है। निकट ही लौह शिल्प में नाविकों के माध्यम से सुख के सतत प्रवाह और जीवन की निरंतरता को दर्शाया गया है।
छत्तीसगढ़ की झांकी हो और यहां की लोक गीतों का मनोहार न हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता। झांकी के साथ-साथ पारंपरिक वेशभूषा में छत्तीसगढ़ के लोक कलाकार ककसार नृत्य करते हुये चलते है। सही मायने में कहा जाये तो झांकी में छत्तीसगढ़ के लोक जीवन, परम्परा और जनजातीय समाज की शिल्पकला को रेखांकित किया गया है। जिसमें शिल्पकला और आभूषणों के साथ ही प्रतिमाओं और दैनिक जीवन में उपयोग होने वाली वस्तुओं को देखा जा सकता है।