शिक्षा ऐसी मिसाल कहीं नहीं, कलेक्टर तैयार कर रहे है भावी पीढ़ी

श्रीे ओ.पी. चौधरी युवाओं के प्रेरणास्रोत



रायगढ़ ए। राज्य निर्माण के समय छत्तीसगढ़ की प्रशासनिक ढांचा भले ही बजबूती खड़ा रहा हो किन्तु आमजनों तक उनकी पहुंच नहीं रही इस बात को नकारा नहीं जा सकता। कारण यह भी था कि अधिकांश प्रशासनिक अधिकारियों की जन्मभूमि छत्तीसगढ़ से बाहर की थी। यहां वे केवल कर्म से जुड़े से माटी से लगाव नहीं था। जैसे-जैसे समय गुजरा छत्तीसगढ़ के युवा भी प्रशासनिक पद पर पहुंचे और तब शुरू हुआ नया दौर। समाज में बदलाव लाने के लिये बेहतर शिक्षा के अलावा कोई दूसरा वि​कल्प नहीं है यह बात साबित करता है राजधानी रायपुर के तात्कालिन कलेक्टर श्री ओ.पी. चौधरी की कार्य प्रणाली को देखकर। जब से रायपुर की कमान युवा प्रशासनिक अधिकारी छत्तीसगढ़ के युवा मा​टीपुत्र श्री चौधरी के हाथों में आई है शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर से बेहतर काम हो रहे है। हाल ही में श्री चौधरी ने अपने ट्विटर अकाउंट में फोटो के साथ ऐसी बाते लिखी जो न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि देश के लिये मिसाल है।

श्री ओ.पी. चौधरी- मेरे गाँव बायंग, जिला रायगढ़ में स्थानीय ग्रामीण शिक्षकों द्वारा 10वीं और 12वीं के बच्चों की निःशुल्क समर ट्यूशन प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी चल रही है।गर्मी की छुट्टी के दौरान ही लगभग 70% पाठ्यक्रम पूरा कर दिया जाता है। भविष्य गढ़ने के शिक्षकों और बच्चों के जज्बे को सलाम...


श्री चौधरी के शब्दों को विस्तार दे तो यही कहा जा सकता है कि उनके गांव बायंग से ​भविष्य में और आईएएस, आईपीएस जैसे प्रशासनिक अफसर निकलेंगे। श्री चौधरी अपनी माटी की ​कर्ज अदा कर रहे है गांव में शिक्षा की नई रौशनी पैदा कर। जब भी उनको समय मिलता है किसी सरकारी स्कूल में पहुंच कर कक्षा लेने लग जाते है उनके स्वभाव और रहन-सहन एक साधारण इंसान सा है जो असाधारण व्यक्ति बनाता है। ​बात बहुत बड़ी है कि गांव के स्थानीय शिक्षक ग्रीष्मकालीन अवकाश में भी बच्चों की ट्यूशन ले रहे है। हर वर्ष ऐसी कक्षाएं लगती है जिसमें 10वीं और 12वी की 75 प्रतिशत कोर्स करा लिया जाता है। अंत में कहा है कि भविष्य गढ़ने के शिक्षकों और बच्चों के जज्बे को सलाम...




श्री चौधरी राज्य निर्माण के बाद के पहले आईएएस अधिकारी है जो एक छोटे गांव के सरकारी स्कूल में हिन्दी माध्यम से पढ़ाई कर अपने बलबूते आज इस ओहदे तक पहुंचे है। उनकी सफलता की कहानी हम जितनी बार पढ़ते है हमें एक नई उर्जा मिलती है, कुछ समाज के लिये नया करने की ललक पैदा होती है। रायगढ़ जिले का एक छोटा गांव जिसका नाम है बायंग, यहीं से शुरू होता है ओ.पी. की सफलता की कहानी। गांव के हिन्दी माध्यम के स्कूल में पढ़ने वाले ओपी की माता का नाम श्रीमती कौशिल्या चौधरी और पिता का नाम श्री दीनानाथ चौधरी है। 

समय ने सबसे पहले उनके पिता को छिन लिया, मन बहुत दुखी हुआ। पिताजी के जाने के बाद भविष्य को लेकर​ चिंता बढ़ने लगी उस ओपी कक्षा दूसरी का छात्र था। मां के संभाला और हमेशा उसे शिक्षा के लिये प्रोत्साहित करती रही। ओपी को बचपन से ही इस बात का अहसास हो गया था कि ज़िंदगी में बड़ा बनने के लिए कुछ बड़ा करना भी पड़ता है। अभावों की परिस्थितियों में समझदारी और सूझ-बूझ के साथ चलना ओपी ने माँ से सीखा। माँ का ही सपना था कि उनका बेटा पढ़ लिखकर बड़ा अफसर बने। बस फिर ओपी को अपना लक्ष्य मिल गया जिससे पूरा करने के लिये दिनरात मेहनत करने लगे। मां ​की परवरिश और दोस्तों की हौसला अफजाई ने ओपी की हर मुस्किल को आसान कर दिया और महज 23 साल की उम्र में वे एक मिसाल बन गया श्री ओ.पी. चौधरी IAS के रूप में।